Saturday 26 September 2015

 निःशक्तता जीवन के प्रति आपके नजरिये को भी बदलती है 



देश में सैकड़ो ऐसे परिवार है जो पीढ़ी दर पीढ़ी विकलांगता का दंश झेल रहे है।  सरकार और समाजसेवी संस्थानों को इनका आकलन और पहचान कर  उनके विकलांगता का कारण पता करने व उसके निदान की समुचित इंतजाम करना चाहिए।  सरकार को जिला स्तर पर हड्डी रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन एवं  न्यूरोलॉजिस्ट की टीम तैयार करने चाहिए जो इनका विकलांग प्रमाणपत्र प्राथमिकता के आधार पर बनाए और इन परिवार में ऐसा क्यो हो रहा है उसकी पड़ताल भी कराए। आंकड़े हमें यह भी बताते हें कि विकलांगों में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की संख्या अधिक है। हमारे देश में मुख्यतः 5 प्रकार की निशक्तता या विकलांगता के मामले सामने आये हैं। आंकड़ों का अध्यनन करने से पता चलता है कि भारतवर्ष में दृष्टि संबंधित असमर्थता से पीडि़ता विकलांगों की संख्या सबसे अधिक है। कुल विकलांगो में 48.5 प्रतिशत इस निःशक्कता से पीडि़त हैं। इसके बाद पैरों से संबंधित विकलांगता के कुल 27.9 प्रतिशत मामले सामने आते हैं। इसके बाद मानसिक विक्षिप्तता (10.3 प्रतिशत), गूंगे या बोलने से लाचार (7.5 प्रतिशत) और बहरे या सुनने से लाचार (5.8 प्रतिशत) आते हैं।

विकलांगता को लेकर लोगों का नजरिया भी बदलने की जरूरत है। भारतीय समाज विकलांगों के प्रति बड़ा कठोर है. लंगड़ा, बहरा, अंधा, पगला ये सभी शब्द व्यक्ति की स्थिति कम उसके प्रति उपेक्षा ज्यादा दर्शाते हैं।  विकलांगता का शिकार कोई भी हो सकता है इसलिए इन्हें घृणा का पात्र न मानें बल्कि स्नेह दें।

विकलांगों के लिए अलग से स्कूल खोले जाने चाहिए और इन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए।  सरकारों को विकलांगो की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही रोजगार में दृष्टिहीनता, श्रवण विकलांग और प्रमस्तिष्क अंगघात से ग्रस्त विकलांगों की प्रत्येक श्रेणी के लिए तीन फीसदी आरक्षण करना होगा। उच्चतम न्यायलय ने सभी राज्यों को यह आदेश दिया है कि वह सभी रोजगारों में तीन फीसदी की हिस्सेदारी विकलांगो के लिए करनी ही होगी।  साथ ही सामाजिक स्तर पर विकलांग व्यक्तियों के साथ परिवहन सुविधाओं, सड़क पर यातायात के संकेतों या निर्मित वातावरण में कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

निःशक्तता जीवन के प्रति आपके नजरिये को भी बदलती है और आप उच्च प्रयोजन के साथ जीवन को एक अलग परिपेक्ष में देखने लगते है। एक नागरिक होने के नाते यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम विकलांगों की जरूरतों को समझें, उनकी बाधाओं (शारीरिक और मानसिक) जो कि उन्हें आम जीवन जीने से रोकती है, को दूर करने का प्रयास करें।

Dharmendra Kumar,
President & Founder
People First Foundation




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